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दोस्तो आज की हमारी पोस्ट भारतीय राजव्यवस्था ( Indian Polity ) से संबंधित है ! इस पोस्ट में हम आपको Indian Polity के एक Topic भारत का संवैधानिक विकास ( Development of Indian Constitution ) के बारे में बताऐंगे ! Indian Polity से संबंधित अन्य टापिक के बारे में भी पोस्ट आयेंगी , व अन्य बिषयों से संबंधित पोस्ट भी आयेंगी , तो आपसे निवेदन है कि हमारी बेवसाईट को Regularly Visit करते रहिये !
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Development of Indian Constitution
कम्पनी के शासन में संवैधानिक विकास
रेग्युलेटिंग अधिनियम, 1973
- बंगाल के फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी के प्रशासक को इस अधिनियम के माध्यम से अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया अर्थात् कलकत्ता, बंबई और मद्रास प्रेसिडेंसियों, जो एक-दूसरे से स्वतंत्र थी, को इस अधिनियम द्वारा बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन करके बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रसीडेंसियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की 1774 में की गयी। इसे सिविल, आपराधिक, नौसेना तथा धार्मिक मामलों में अधिकारिता प्राप्त थी।
- सरकारी अधिकारियों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी रूप में उपहार लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
- इसी अधिनियम द्वारा प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे की नियुक्ति हुई।
संशोधनात्मक अधिनियम, 1781
- कलकत्ता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
- कंपनी के अधिकारी शासकीय रूप से किये गये अपने कार्यो के लिए सर्वोच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र से बाहर हो गये।
- न्यायालय की आज्ञायें तथा आदेश लागू करते समय सरकार नियम तथा विनिमय बनाते समय भारत के सामाजिक धार्मिक रीति-रिवाजों पर ध्यान देगी।
- गवर्नर-जनरल-इन-काउंसिल को सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता से मुक्त कर दिया गया।
पिट्स इण्डिया अधिनियम, 1784
- बोर्ड ऑफ डायरेक्र्ट्स के नियंत्रण हेतु उसके ऊपर बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गयी, जिसके सदस्यों की नियुक्ति इंग्लैण्ड का सम्राट करता था।
- भारत में प्रशासन गर्वनर जनरल तथा उसकी तीन सदस्यों वाली एक परिषद को दे दिया गया।
- गर्वनर जनरल की परिषद की सदस्य संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गई साथ ही मद्रास तथा बम्बई की सरकारों को पूरी तरह से बंगाल सरकार के अधीन कर दिया गया।
- बम्बई तथा मद्रास प्रेसिडेंसियां गर्वनर-जनरल और उसकी परिषद के अधीन कर दी गई।
चार्टर अधिनियम, 1793
- इसके द्वारा सभी कानूनों एवं विनियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायालय को दिया गया।
- कम्पनी के व्यापारिक अधिकारों को और 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
- अपनी परिषद् के निणयों को रद्द करने की जो शक्ति लार्ड कार्नवालिस को दी गई थी, वह आने वाले गवर्नर-जनरल तथा गर्वनरों को भी दे दी गई।
- गवर्नर-जनरल का बम्बई तथा मद्रास प्रेसिडेन्सियों पर अधिकार स्पष्ट कर दिया गया।
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चार्टर अधिनियम, 1813
- भारत में कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करके कुछ प्रतिबंधों के साथ समस्त अंग्रेजों को भारत से व्यापार करने की खुली छूट मिली (किंतु चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार के अधिकार को बनाये रखा गया)।
- भारतीय शिक्षा पर एक लाख रूपये की वार्षिक धन राशि के व्यय का प्रावधान किया गया।
- भारत में ईसाई मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति दी गयी।
- भारतीय राजस्व से व्यय करने के लिए नियम एवं पद्धतियां बनाई गयीं।
चार्टर अधिनियम, 1833
- भारत में अंग्रेजी राज के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम संकेत 1833 के चार्टर अधिनियम में मिलतें हैं।
- बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गर्वनर जनरल कहा जाने लगा तथा गवर्नर जनरल को सभी नागरिक तथा सैन्य शक्तियां प्रदान की गयीं। इस प्रकार देश की शासन प्रणाली का केन्द्रीयकरण कर दिया गया।
- भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की व्यवस्था की गयी।
चार्टर अधिनियम, 1853
- कम्पनी के लोक सेवकों की नियुक्ति के लिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा की एक प्रणाली को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया। इस प्रकार विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिकों के लिए भी खोल दी गई और इसके लिये 1854 में (भारतीय सिविल सेवा के संबंध में) मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
- इन सदस्यों को विधियां तथा विनियम बनाने के लिए बुलाई गई बैठकों के अलावा परिषद में बैठने तथा मतदान करने का अधिकार नहीं था। इन सदस्यों को ‘विधायी परिषद’ कहा जाता था।
क्राउन के शासन में सवैधानिक विकास
1858 का अधिनियम
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन की समाप्ति और ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन प्रारम्भ होना।
- गर्वनर जनरल को ‘द वायसराय ऑफ इण्डिया’ का पदनाम भी दिया गया। लार्ड केनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने। यह प्रतिवर्ष भारत की नैतिक एवं आर्थिक प्रगति की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद के समक्ष प्रस्तुत करता था।
- भारत में शासन तथा राजस्व से सम्बन्धित अधिकारों तथा कर्तव्यों हेतु ‘भारत के लिए राज्य सचिव’ का पदनाम भी दिया गया।
- ‘भारत सचिव’ ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था तथा ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था, किन्तु उसका वेतन भारत पर भारित था। उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों वाली भारतीय परिषद थी।
1861 का अधिनियम
- इस अधिनियम द्वारा ब्रिटिश सरकार ने वायसराय तथा प्रान्तों के गर्वनर के अधिकार बढ़ा दिए।
- पोर्टफोलियो व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ तथा वायसराय को विपत्ति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
1892 का अधिनियम
- यह अधिनियम 1861 के अधिनियम का एक संशोधनात्मक विधेयक था।
- व्यवस्थापिकाओं में प्रतिबंधित समिति एवं अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों का प्रावधान किया गया।
- सदस्यों को व्यवस्थापिकाओं में बजट पर विचार-विमर्श करने तथा प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। इसे संसदीय व्यवस्था का प्रारम्भ कहा जा सकता है।
1909 का अधिनियम
- इस अधिनियम को मॉर्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है (उस समय लॉर्ड मॉर्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे)।
- इसने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में काफी वृद्धि की। केंद्रीय परिषद में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई। प्रांतीय विधान परिषदों में इनकी संख्या एक समान नहीं थी।
- इसने दोनों स्तरों पर विधान परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया। उदाहराण के तौर पर अनुपूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि।
- इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था। ,
- इस अधिनियम ने पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसकें अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।
1919 का अधिनियम
- केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया। केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। लेकिन सरकार का ढ़ांचा केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा।
- इसने प्रांतीय विषयों को पुन: दो भागों में विभक्त किया – हस्तांतरित और आरक्षित। हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और उस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे। दूसरी ओर आरक्षित विषयों पर गर्वनर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद कें प्रति उत्तरदायी नहीं थी। शासन की इस दोहरी व्यवस्था को द्वैध (यूनानी शब्द डाई-आर्की से व्युत्पन्न) शासन व्यवस्था कहा गया। हालांकि यह व्यवस्था काफी हद तक असफल ही रही।
- इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की। इस प्रकार भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्य सभा और लोक सभा का गठन किया गया। दोनों सदनों के बहुसंख्यक सदस्यों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से निर्वाचित किया जाता था।
- इसके अनुसार, वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से (कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।
- इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल- भारतीयों और यूरोपियों के लिए भी पृथक निर्वाचकों के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।
- इससे एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। अत: 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
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1935 का भारतीय शासन अधिनियम
- यह 1932 में तैयार किए गए एक श्वेत-पत्र (व्हाइट पेपर) पर आधारित था, इसमें कोई प्रस्तावना नहीं थी।
- इसमें अखिल भारतीय संघ, जिसमें 11 ब्रिटिश प्रान्त, 6 चीफ कमिश्नर क्षेत्र तथा स्वेच्छा से सम्मिलित होने वाली देशी रियासतें सम्मिलित थीं।
- केन्द्र व उसकी इकाइयों के बीच तीन सूचियां-संघ, राज्य सूची व समवर्ती सूची बनाई गई, जिनमें क्रमश: 59, 54 और 36 विषय थे।
- इसके तहत 11 प्रान्तों में से 6 प्रान्तों में द्विसदनात्मक व्यवस्था का आरंभ हुआ तथा राष्ट्रपति के अध्यादेश की व्यवस्था यहीं से प्रेरित है।
- प्रांतो में द्वैध शासन समाप्त कर दिया गया, उन्हें स्वतंत्र एवं स्वशासन का अधिकार दिया गया किन्तु गवर्नर को विशेष अधिकार प्रदान किये गये।
- ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता बनी रही तथा बर्मा, बराड़ एवं अदन को भारत से पृथक कर दिया गया।
- इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिये भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गयी।
भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- 3 जून 1947 को प्रस्तुत की गयी, माउण्टबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 4 जुलाई, 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया तथा इसे 18 जुलाई, 1947 को सम्राट द्वारा अनुमति प्रदान कर दी गयी, और 15 अगस्त,1947 को यह लागू कर दिया गया। भारत को एक स्वतंत्र व सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य घोषित किया गया।
- इसमें 15 अगस्त, 1947 से दो डोमिनियन राज्य भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की गयी।
- दोनों राज्यों के लिए ब्रिटिश सरकार पृथक-पृथक और यदि दोनों सहमत हों तो संयुक्त गर्वनर जनरल नियुक्त करेगी।
- दोनों राज्य अपनी-अपनी संविधान सभा में अपने देश के लिए संविधान का निर्माण कर सकते हैं।
अति महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
- कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 1774 में हुई थी।
- 1786 में गवर्नर को अपनी परिषद की राय ठुकरा देने का अधिकार दे दिया गया तथा गवर्नर जनरल द्वारा बनाए गए कानूनों को रेग्युलेशन्स कहा जाता था तथा मैकॉले गवर्नर जनरल की परिषद का प्रथम कानूनी सदस्य था।
- 1833 में विधि आयोग का गठन किया गया तथा उसे भारतीय कानूनों को संचित तथा संहिताबद्ध करने को कहा गया।
- 1833 के चार्टर अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- विलियम बैंटिक भारत का प्रभम गवर्नर जनरल था। उन्हें ही बंगाल का अंतिम गवर्नर जनरल होने का श्रेय प्राप्त है।
- 1858 के भारत सरकार अधिनियम के तहत गवर्नर जनरल को वायसराय का नाम दिया गया।
- सत्येन्दु प्रसाद सिन्हा गवर्नर जनरल के कार्यकारी परिषद के लिए चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया।
- 1919 के माण्टेग्यु-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत सर्वप्रथम प्रत्यक्ष चुनाव प्रारंभ हुए तथा पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व की स्थापना 1909 मार्ले-मिन्टो सुधारों में की गई थी। लार्ड मिण्टो को ‘साम्प्रदायिक निर्वाचक मण्डल’ का जनक माना जाता है।
- प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था 1919 के भारत सरकार अधिनियम या मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत हुई थी।
- सिख, एंग्लो इंडियन, ईसाइयों तथा यूरोपियों को 1935 में पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व मिला था।
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1935 में हुई थी।
- बंगाल का प्रथम गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव था, जबकि अंतिम गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स था।
- बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेग हेस्टिंग्स था, जबकि अंतिम गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक था।
- भारत का प्रथम गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक था, जबकि अंतिम गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग था।
- भारत का प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग था, जबकि अंतिम वायसराय लार्ड माउन्ट बैटन था।
- स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबैटन था, जबकि स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरलएवं वायसराय सी. राजगोपालाचारी थे।
- 1859 के बाद से गवर्नर जनरल, वायसराय से विभूषित।
प्रमुख क्रमिक तिथि संचिका
- 1687 – मद्रास में भारत के प्रथम नगर निगम का गठन किया गया।
- 1772 – लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स ने ‘जिला कलेक्टर’ का पद निर्मित किया।
- 1829 – लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा’मंडल-आयुक्त’ (Divisional Commissionar) का पद निर्मित किया गया।
- 1859 – लॉर्ड कैनिंग ने पोर्टफोलियो पद्धति प्रारंभ की।
- 1860 – बजट प्रणाली लायी गयी।
- 1870 – वित्तीय विकेंद्रीकरण के संबंध में लॉर्ड मेयो के प्रस्ताव ने भारत में स्थानीय स्वशासन से संबंधित संस्थाओं के विकास का प्रारूप तैयार किया।
- 1872 – लॉर्ड मेयो के समय में भारत की पहली जनगणना हुई।
- 1881 – लॉर्ड रिपन के काल में भारत की पहली नियमित जनगणना हुई।
- 1882 – लॉर्ड रिपन के प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन की अधिकृत आदिलेख या महाधिकार पत्र (Magna Carta) माना जाता है। लॉर्ड रिपन को ‘भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक’ कहा जाता है।
- 1905 – लॉर्ड कजैन ने कार्यकाल की पद्धति (Tenure System) को आरंभ किया।
- 1905 – भारत सरकार के एक निर्णय के तहत रेल्वे बोर्ड का गठन हुआ।
- 1921 – केन्द्र में ‘लोक लेखा समिति’ (Public Account Committee) बनायी गयी।
- 1921 – ‘आम बजट’ से ‘रेल बजट’ को अलग कर दिया गया।
- 1935 – केंद्रीय विधायिका के एक अधिनियम के तहत ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना की गयी।
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