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दोस्तो आज की हमारी पोस्ट भारतीय राजव्यवस्था ( Indian Polity ) से संबंधित है ! इस पोस्ट में हम आपको Indian Polity के एक Topic संघ एवं राज्य क्षेत्र ( Union and its Territory Questions and Answers ) के बारे में बताऐंगे ! Indian Polity से संबंधित अन्य टापिक के बारे में भी पोस्ट आयेंगी , व अन्य बिषयों से संबंधित पोस्ट भी आयेंगी , तो आपसे निवेदन है कि हमारी बेवसाईट को Regularly Visit करते रहिये !
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संघ एवं राज्य क्षेत्र ( Union and its Territory )
- भारत के राज्य क्षेत्र में निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया गया जिसमें राज्यों के राज्य क्षेत्र, पहली अनुसूची में वर्णित संघ राज्य क्षेत्र और ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ।
राज्यों का संघ
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को ”राज्यों का संघ” कहा गया है केंद्र शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है।
- डी. डी. बसु के अनुसार भारत का संविधान एकात्मक तथा संघात्मक का सम्मिश्रण है।
- के. सी. व्हीलर के अनुसार भारत का संविधान संघीय कम और एकात्मक अधिक है, उनके अनुसार यह अर्द्ध-संघीय है।
- भारत में वर्तमान में 28 राज्य तथा 7 संघ राज्य क्षेत्र हैं। संघ राज्य क्षेत्रों में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अलग दर्जा प्रदान कर दिया गया है।
- शक्तियों का केंद्र तथा राज्यों के बीच विभाजन किया गया है। संघ सूची में 99 विषय समवर्ती सूची में 52 तथा राज्य सूची में 61 विषय सम्मिलित हैं।
- भारतीय संघ अवशिष्ट विषय केंद्र सरकार के पास हैं।
- भारतीय संघ की इकाइयों (राज्यों) को अपना संविधान रखने की अनुमति नहीं है।
- पर कुछ राज्यों को जैसे अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान की गयी है। इसी प्रकार अनुच्छेद 371 के अंतर्गत आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, अनु. 371क के अंतर्गत नागालैण्ड, अनुच्छेद 371ख के अंतर्गत असम अनुच्छेद 371ग के अंतर्गत सिक्किम के लिए विशेष प्रावधान हैं।
- भारतीय संघ की इकाइयों को विदेशों से सीधे व्यापार करने एवं ऋण लेने का भी अधिकार नहीं है।
- भारतीय संघ के राज्य आर्थिक सहायता के लिए संघीय सरकार पर निर्भर करते हैं।
- राष्ट्रीय आपातकाल घोषित होने के समय संपूर्ण व्यवस्था एकात्मक राज्य के रूप में कार्य करने लगती है।
- भारतीय संघ व्यवस्था कनाडा की संघीय व्यवस्था से अधिक समानता रखती है। भारत में इकहरी नागरिकता प्राप्त है। संघ की इकाइयों को पृथक् नागरिकता प्राप्त नहीं हैं।
- केंद्र सरकार को राज्यों की सीमाओं मे परिवर्तन का अधिकार है।
- संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है, यदि वह राष्ट्रीय महत्व का हो या राष्ट्रपति शासन लागू हो।
- यदि समवर्ती सूची के विषय पर राज्य तथा केंद्र दोनों की कानून बनाते हैं, तो केंद्र का कानून मान्य होता है।
- आंध्र प्रदेश भाषायी आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था।
राज्यों के परिवर्तित नाम
पुराना नाम – नया नाम
- मद्रास – तमिलनाडु
- आंध्र – आंध्रप्रदेश
- त्रावणकोर-कोचिन – केरल
- मैसूर – कर्नाटक
- संयुक्त प्रांत – उत्तरप्रदेश
- लक्षद्वीप, मिनिकाय एवं अदिनी द्वीप समूह – लक्षद्वीप
नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार नए राज्यों के प्रवेश के संबंध में संसद को दो प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गई है:
- नए राज्यों को संघ में सम्मिलित करने की शक्ति।
- नए राज्यों की स्थापना करने की शक्ति।
प्रथम शक्ति ऐसे राज्यों से संबंधित है जो पहले से ही विद्यमान हैं अर्थात् अस्तित्व में हैं और दूसरी शक्ति भविष्य में अर्जित या स्थापित किए जाने वाले राज्यों से संबंधित है।
नये राज्यों के निर्माण की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 3 में नए राज्यों के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं व नामों के परिवर्तन के संबंध मे प्रावधान है।
- संसद साधारण बहुमत से पारित कानून द्वारा नए राज्यों के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन कर सकती है।
- नए राज्यों के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन से संबंधित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुशंसा के बिना संसद के किसी भी सदन में नहीं लाए जा सकते।
- यदि राज्य-विधायिका उस निर्दिष्ट समय सीमा के अंदर अपना मत नहीं देती, तो समय-सीमा बढाई जा सकती है।
राज्यों का पुनर्गठन
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, विभिन्न क्षेत्रों से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी।
- भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर अध्ययन करने के लिए संविधान सभा ने नवंबर 1947 में ‘एस. के. धर आयोग’ बैठाया।
- ‘धर आयोग’ की सिफारिशों पर विचार करने के लिए 1948 के अपने जयपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने तीन सदस्यों वाली समिति गठित की।
- इसकें तीन सदस्यों, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल तथा पट्टाभिसीतारमैया के नाम पर यह समिति जे. वी. पी. समिति’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- इस समिति ने राज्यों के पुनर्गठन के लिए भाषा के आधार को स्वीकार नहीं किया।
- इसने सुझाव दिया कि सुरक्षा, एकता तथा राष्ट्र की आर्थिक संपन्नता को राज्यों के पुनर्गठन का आधार होना चाहिए। इसकी सिफारिशों को 1949 में ‘कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने स्वीकार कर लिया, परंतु दक्षिण के राज्यों विशेषत: तेलुगू भाषी क्षेत्रों में भाषा के आधार पर राज्यों विशेषत: तेलुगू भाषी क्षेत्रों में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग जोर पकड़ने लगी।
- चूँकि तेलुगू भाषी क्षेत्रों में आंदोलन हिंसक रूप लेने लगा, इसलिए कांग्रेस ने 1953 में तेलुगूभाषी क्षेत्रों का आंध्रप्रदेश राज्य के रूप में पुनर्गठन स्वीकार कर लिया।
- इस समस्या के व्यापक अध्ययन के लिए भारत सरकार ने 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक ‘राज्य पुनर्गठन आयोग’ बनाया।
- आयोग के अन्य सदस्य थे – ह्दयनाथ कुँजरू तथा के. एम. पाणिक्कर।
- 1955 में सौंपी गयी अपनी रिपोर्ट में आयोग ने भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार स्वीकार किया।
- इसने विभिन्न श्रेणियों के 27 राज्यों का पुनर्गठन, 16 राज्यों व 3 केंद्रशासित प्रदेशों में करने का सुझाव दिया।
- आयोग की अनुशंसाओं को प्रभावकारी बनाने के लिए संसद् ने ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956’ पारित कर दिया।
नये राज्यों का निर्माण
- नए राज्यों कें निर्माण के लिए अनेक माँगें हुई हैं, यथा – हरित प्रदेश (उत्तर प्रदेश), तेलगांना (आंध्र प्रदेश), विदर्भ (महाराष्ट्र), बोडोलैंड (असम), गोरखालैंड (पश्चिम बंगाल), कोडगु (कर्नाटक, पुडुचेरी), दिल्ली इत्यादि।
- यह कहना अनावश्यक है कि राज्यों की उपर्युक्त सभी माँगें पूरी नहीं की जा सकती, क्योंकि इससे राज्यों की संख्या का विस्तार उस सीमा तक हो जाएगा, जिस सीमा तक वह संघीय व्यवस्था पर भारास्वरूप ही होगा। ऐसी माँगें, जहाँ एक ओर आर्थिक दृष्टि से असंभाव्य हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे राष्ट्रीय एकता को खतरा होगा। यह आवश्यक नहीं है कि छोटे राज्यों का प्रशासन सुचारू रूप से चलाया जा सकता है, जैसा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र, में देखा गया है कि कुछ राज्यों में जिलों की तुलना में मंत्रियों की संख्या अधिक है।
- नए राज्यों के निर्माण में अनेक समस्याएँ है, यथा–उच्च न्यायालय, सचिवालय आदि संस्थाओं के निर्माण से संबंधित प्रशासनिक समस्याएँ, नयी राजधानी की स्थापना का व्यय इत्यादि।
- इसके बावजूद भी संघीय संसद (Union Parliament) ने। उत्तरांचल (वर्तमान उत्तराखंड), झारखंड तथा छत्तीसगढ़ तीन नए राज्यों के निर्माण हेतु सन् 2000 में तीन अधिनियमों को पारित किया।
सन् 1950 के पश्चात बनाए गए राज्य
- आंध्र प्रदेश – आंध्र प्रदेश अधिनियम, 1953 द्वारा चेन्नई राज्य के कुछ क्षेत्रों को निकालकर बना भाषायी आधार पर पृथक् राज्य।
- गुजरात, महाराष्ट्र – 1960 में मुम्बई राज्य को दो भागों गुजरात तथा महाराष्ट्र में विभाजित कर दिया गया।
- केरल – त्रावण्कोर-कोचीन की जगह बनाया गया (राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा)।
- कर्नाटक – राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 द्वारा मैसूर राज्य से पृथक कर बनाया गया। राज्य अधिनियम 1973 में इसे कर्नाटक नाम दिया गया।
- नागालैण्ड – नागालैण्ड राज्य अधिनियम, 1962 द्वारा असम राज्य से अलग बनाया गया नया राज्य।
- हरियाणा – पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 द्वारा पंजाब के कुछ क्षेत्रों को निकालकर बनाया गया।
- हिमाचल प्रदेश – हिमाचल संघ राज्य क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम, 1970 द्वारा राज्य का दर्जा।
- मेघालय – संविधान के 23वें संशोधन अधिनियम, 1969 द्वारा इसे अलग राज्य के भीतर एक उपराज्य बनाया गया, पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम 1971 द्वारा इसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- मणिपुर, त्रिपुरा – पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 1971 द्वारा संघ राज्य क्षेत्र से पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- सिक्किम – 36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 द्वारा इसे पूर्ण राज्य की मान्यता प्रदान की गयी।
- मिजोरम – मिजोरम राज्य अधिनियम, 1986 द्वारा पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- अरूणाचल प्रदेश – अरूणाचल प्रदेश अधिनियम, 1986 द्वारा संघ राज्य क्षेत्र से पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- गोवा – गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 द्वारा संघ दमन और दीव राज्य क्षेत्र बना रहने दिया तथा गोवा को निकालकर राज्य का दर्जा प्रदान किया।
- छत्तीसगढ़ – यह राज्य मध्यप्रदेश से अलग करके बनाया गया है (84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा सृजित)
- उत्तराखंड – यह राज्य उत्तरप्रदेश से अलग करके बनाया गया है। (84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा सृजित)। पहले इसका नाम उत्तरांचल था, जिसे बाद मे बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।
- झारखंड – यह राज्य बिहार राज्य से अलग करके बनाया गया है। (84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा सृजित)।
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